घर का भेदी लंका ढाये,
बचपन से ये पढ़े-पढाये।
बे सिर पैर की बातें कर के,
पहले तुम टीवी पर छाये।
उन्हीं बेतुकी बातों से फिर,
सीमा पार, हीरो बन आये।
अब करते हो उनका खण्डन,
साबित जब कुछ ना कर पाये।
मार कुल्हाड़ी अपने पैरों,
लौट के बुद्धू घर को आये।
दो पल के इस यश के पीछे
अपने देश को दाँव लगाये!
जी उट्ठे जयचंद-विभीषण,
कैसे अच्छे दिन हैं आये!
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