Tuesday 7 June 2016

पोहा की अभिलाषा

विश्व पोहा दिवस के उपलक्ष्य में :



चाह नहीं मैं सुरबाला के,

 प्लेटों में परसा जाऊँ। 


चाह नहीं शादी ब्याह  में,

 बन  दूल्हे  को ललचाऊँ। 


चाह नहीं, होटल के मेन्यू

 पर, हे हरि, डाला जाऊँ। 


चाह नहीं, संसद कैंटीन में 

 बनूँ, भाग्य पर इठलाऊँ!


मुझे पका लेना घरवाली 

 उन जन को देना दो प्लेट 

 कार्यालय  में सर खपाने,

 जाने को जो हो रहे लेट!

~ फ़ुर्सतनामा 



डिस्क्लेमर : माखनलाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविता "पुष्प की अभिलाषा " से किसी प्रकार की सिमिलैरिटी इज़ प्योरली कोइन्सीडेंटल। 


No comments:

Post a Comment