Thursday 16 June 2016

Naya Amrit - Shahryar

अख़लाक़ मोहम्मद खान "शह्र्यार" एक भारतीय शिक्षाविद के नाते कम और आधुनिक उर्दू शायरी के एक बेहतरीन exponent के रूप में अधिक जाने जाते हैं। उन्हें 1987 में "ख्वाब का दर बंद है" के लिए साहित्य अकादमी अवॉर्ड से नवाज़ा गया था. 2008 में उन्हें साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया।

कहा जाता है की शह्र्यार एथलीट बनना चाहते थे लेकिन उनके पिता, अपनी तरह उन्हें भी, पुलिस फ़ोर्स में भर्ती कराना चाहते थे। नतीज़तन शह्र्यार घर छोड़ कर भाग गए और फिर ख़लील -उर -रहमान आज़मी की सलाह से अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में उर्दू फ़िक्शन पढ़ाने लग गए। बाद में वहीं से आगे की पढ़ाई पूरी कर के पीएचडी हासिल की।

आगे चल कर उन्होंने हिंदी फ़िल्मों में गीत भी लिखे जो श्रोताओं द्वारा इतने सराहे गए की एक तरह से अमरत्व प्राप्त कर गए। उनके मित्र मुज़फ़्फ़र अली ने अपनी पहली फ़िल्म गमन में इनकी दो ग़ज़लों को इस्तेमाल किया - "सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है", और "अजीब सनेहा मुझ पर गुज़र गया यारों"।
उमराव जान में, "दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए", "ये क्या जगह है दोस्तों", "इन आँखों की मस्ती के" आदि इनके कुछ बहुचर्चित गीत और ग़ज़लें हैं। ये कहने में कोई हर्ज़ नहीं होगा की "बॉलीवुड" की अब तक की बेहतरीन पेशकश में से ये सब एक हैं।

आज उनकी, इन सब गीतों और ग़ज़लों से अलग लिखी गयी, एक नज़्म पेश कर रही हूँ।  इसकी गहराई रूह को छू जाती है। 



नया अमृत 


दवाओं की अलमारियों से सजी 
इक दूकान में 
मरीज़ों के अंबोह* में मुज़्महिल  सा 
इक इंसान खड़ा है 
जो इक कुबड़ी सी शीशी के  
सीने पे लिखे हुए 
एक इक हर्फ़ को ग़ौर से पढ़ रहा है 
मगर इस पे तो ज़हर लिखा हुआ है
इस इंसान को  क्या मर्ज़ है 
ये कैसी दवा है!
                  ~ शह्र्यार 

*भीड़   
**थका-हारा 


Naya Amrit 

DavaaoN ki almaariyoN se sajii

ik duKaan meiN

MariizoN ke aNboh* meiN mazmahil* saa

ik insaan khaDaa hai

Jo ik kubaDii sii shiishii ke

Siine pe likhe hue

Ek ik harf ko Gaur se paDh raha hai

Magar is pe to zahar likkhaa hua hai 

Is insaan ko kya marz hai

Ye kaisii davaa hai

                             ~ Shahryar

*crowd   
**fatigued



स्रोत: कुछ अंश विकिपीडिया से अनुवादित 


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