Friday, 28 October 2016

दिए जलाइये, दिल नहीं ~ फ़ुर्सतनामा

 
 

 
 इस दिवाली दिए जलाइये, दिल नहीं,
इंसान हैं, बेरहम क़ातिल नहीं। 
 
 
रौशन चराग़-ए-ज़िन्दगी करिये,
काम इतना यूँ भी ये मुश्किल नहीं। 
 
 
चादर जो आपकी है, मापते  चलिए,
फैलाइये ना पाँव, ग़र हासिल नहीं। 
 
 
 अपनी हैसियत से घर सजाइये अपना,
घर है, ग़ैर की महफ़िल नहीं।   
 
  
अच्छे न लगें तो मत फोड़िये पटाखे,
अक्लमंद कहलायेंगे,बुज़दिल नहीं। 
 
 
त्यौहार सारे बस चराग़-ए-राह हैं,
ज़िंदगी की आख़िरी मंज़िल नहीं।
 
~ फ़ुर्सतनामा 
 
 
©Fursatnama  

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