Saturday, 8 October 2016

डायरी खो गयी है ~ फ़ुरसतनामा




 डायरी, 
जिसमें 
अनाम  परिंदों के 
गुमनाम ठिकाने 
लिक्खे हुए हैं। 

डायरी, 
जिसमें 
हमने फूलों की 
शैतानियाँ लिक्खीं,  
पहाड़ों के गहरे राज़ 
और 
कल-कल बहते झरनों का 
शोर लिक्खा।

डायरी, 
जिस के सीने में 
दफ़्न 
समुन्दर और सूरज 
की 
दुश्मनी के क़िस्से थे। 
परिंदों और पेड़ों के, 
दर्ज़ थे 
रूहानी रिश्ते। 

हमारी तरक़्क़ी के सफ़र को  
जिसने रौशन कर रक्खा था 
वो डायरी 
 खो गयी है, 
और ज़िंदगी की उजाड़ राहें 
हमसे शिकायत कर रही हैं। 

~ फ़ुरसतनामा 






*शीन काफ निज़ाम की नज़्म से प्रेरित 


©Fursatnama

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