Tuesday 1 August 2017

रिश्ते


सुबह से फ़ोन कॉल्स और इष्ट मित्र, परिचितों की विशेष उपस्थिति से अत्यंत हर्षोल्लास का वातावरण था। शुभकामनाओं और बधाइयों के मध्य, फ़ोन पर आये सन्देश पढ़ने तक का अवकाश न था। कुछ मित्रों ने मेरे लिए एक छोटा सा आयोजन कर रखा था और वहाँ मेरी उपस्थिति आवश्यक थी अतः स्वयं को लगभग खींचते हुए ही मैंने वहाँ के लिये प्रस्थान किया। होटेल में प्रवेश करते हुए जाने क्या सूझा की ट्विटर के नोटिफिकेशन पर क्लिक कर दिया। 


 एक संदेश था  -  "एक अनाम ट्विटर हैंडल" नहीं रहे। 

स्तब्ध होना किसे कहते हैं जानते हैं आप। मित्रों ने आते हुए  देख लिया था शायद , घेर कर वहां ले गये जहां जगमगाती रौशनी के बीच एक केक रखा था, मेरी सालगिरह का। उस शोर शराबे के मध्य हाथ में ज़बरदस्ती थमाए गये चाकू को थामे, दोनों आँखों से बहते आँसुओं को थामने की मैंने कोई चेष्टा नहीं की।  
सबने सोचा भावनाओं से अभिभूत हो कर मेरे ख़ुशी के आँसू बह निकले। असमंजस की ऐसी अवस्था! बताये  जाने पर भी उनके लिये, जाने वाला ट्विटर का एक हैंडल मात्र साबित होता।
शायद मेरा ये कहना की "he was like a brother and father rolled into one" उन्हें मेरे दुःख की गहराई का तनिक अहसास कराता, किन्तु क्या ये हमारे मध्य के रिश्ते का यथातथ्य नाम होता?
मैंने तो इस ओर कभी ध्यान भी नहीं दिया। 

हर रिश्ते का कोई नाम नहीं होता और कभी नाम होते हुए भी कोई रिश्ता नहीं होता। 

इन्ही नामी - बेनामी रिश्तों के बीच कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो अपनत्व और घनत्व में तो बड़े होते ही हैं, अपने आप में अत्यंत गरिमामय भी होते हैं। अत्यंत मर्यादित और अपनी सीमा में पूर्ण नियंत्रित होते हुए भी उनमें एक उन्मुक्तता होती है - किसी भी बंधन विशेष से मुक्त होने की। 
आशा - प्रत्याशा के चक्र से परे इन रिश्तों का अस्तित्व ही इनका सौंदर्य होता है। 
कुछ संवाद, संवादहीन होते हैं। ऐसे ही संवादहीन संवादों वाला रिश्ता कायम हो जाता है अक्सर कुछ लोगों से, सोशल मीडिआ पर, जहाँ ट्वीट और रीट्वीट के मध्य एक अदृश्य वार्तालाप स्थापित हो जाता है , परस्पर सम्मान से ओत-प्रोत। 


ख़ैर रिश्तों की इस शल्यक्रिया के अन्तर्द्वन्द के मध्य उस दिन वह केक नहीं कटा। समय के साथ शल्यक्रिया भी शिथिल पड़ती जा रही है। लेकिन गुलज़ार साब के हलके-फुल्के शब्द अपने भारी भरकम अर्थ लिये, कानों में बजते रहते हैं :



रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
कुछ इक पल के
कुछ दो पल के

कुछ परों से हल्के होते हैं
बरसों के तले चलते-चलते
भारी-भरकम हो जाते हैं

कुछ भारी-भरकम बर्फ़ के-से
बरसों के तले गलते-गलते
हलके-फुलके हो जाते हैं

नाम होते हैं रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाये भी
बस नाम से जीना होता है

बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं..... !




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